Friday, November 13, 2009

भक्ति काल की फुटकल रचनाएँ

जिन राजनितिक और सामाजिक परिस्थुतियों के बीच भक्ति का काव्य प्रवाह उमड़ा, उनका संक्षिप्त उल्लेख आरम्भ हो चूका है| वह प्रवाह राजाओ या शासको के प्रोत्साहन आदि पर अवलंबित न था | वह जनता की प्रवृति का प्रवाह था जिसका प्रवर्तक काल था | अ तो उसको पुरस्कार या एस के लोभ ने उत्पन किया था और ने भय रोक सकता था | जिस काल में तुलसी और सुर ऐसे भक्त के अवतार तथा नरहरी,गैंग और रहीम ऐसे निपूर्ण भवुक कवी दिखाई पड़े उसके साहित्यिक गौरव की ओर धयान जाना स्वभाविक ही है|

. छिहल - ये राजपूताने की ओर के थे |संवत १५७५ में इन्होने 'पंचसहेली' नाम की एक छोटी -सी पुस्तक दोहो में राजस्थानी मिली भाषा में बने जो कविता की दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती | इनमे पञ्च सखियों की विरह वेदना का वर्णन है| दोहे इस ढंग के है-

देख्या नगर सुहावना,अधिक सुचंगा थानु |

नॉऊ चंदरी प्रगटा , जनु सुरलोक समानु ||

ठाई-ठाई स्वर कर पेखीय , सुभर भरे निवाण|

ठाई- ठाई कुआँ बावरी, सोहई फटिक सवान ||

पंद्रह सै पचहतरै , पुनिम फागुन मास |

पञ्च सहेली वर्णई, कवि छिहल परगास ||

. लालचदास - ये रायबरेली के एक हलवाई थे |इन्होने संवत १५८५ में 'हरिचरित ' ओर संवत १५८७ में 'भगवत दशम स्कंध भाषा ' नाम की पुस्तक अवधि मिली भाषा में बनाई | ये दोनों पुस्तकें काव्य की दृष्टि से सामान्य श्रेणी की है ओर दोहे - चौपाइयों में लिखी गई है| 'दशम स्कंध भाषा ' का उल्लेख हिन्दुस्तानी के फ्रांसीसी विद्वान् गार्सा डी तासी ने किया है ओर लिखा है की उसका अनुवाद फ्रांसिसी भाषा में हुआ है |

. कृपाराम - इनका कुछ वृतांत ज्ञात नहीं | इन्होने संवत १५९८ में रसृति पर 'हित्तारंगिनी ' नामक ग्रन्थ दोहो में बनाया | रीती या लक्षण ग्रंथो में यह बहुत पुराना है |कवि ने कहा है की और कवियों ने बड़े चंदो के विस्तार में श्रृंगार रस का वर्णन किया है पर मैंने 'सुघरता 'के विचार से दोहो में वर्णन किया है | इससे जान पड़ता है की इनके पहले और लोगों ने भी रीती ग्रन्थ लिखे थे जो अब नहीं मिलते है|

. महापात्र नरहरी बंदीजन -इनका जन्म संवत १५६२ में और मृत्यु संवत १६६७ में कही जाती है| महापात्र की उपाधि इन्हें अकबर के दरबार में मिली थी | ये अरुनी फतेहपुर के रहने वाले थे और अकबर के दरबार में इनका बहुत मान था | इन्होने छप्पय और कवित कहे है| इनके बनाये दो ग्रन्थ परम्परा से प्रसिद्ध है - 'रुक्मिणीमंगल'और 'छप्पयनिति' | एक तीसरा ग्रन्थ 'कवित संग्रह भी खोज में मिला है |

. नर्रोत्तम दास -येसितापुर के जिलेवाडी नामक कस्बे के रहने वाले थे | शिवसिंहसरोज में इनका संवत १६०२ में वर्तमान रहना लिखा है | इनकी जाति का उल्लेख कही नहीं मिलता है | इनका 'सुदामा चरित्र ' ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध है | इसमें घर की दरिद्रता का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है| यद्यपि यह छोटा है, तथापि इसकी रचना बहुत ही सरस और ह्रदयग्राहिणी है और कवि की भावुकता का परिचय देती है |

. आलम - ये अकबर के समय के मुसलमान कवि थे जिन्होंने सन् ९९१ हिजरी अर्थात संवत १६३९ -४० में ' माधवनल कामकंदला ' नाम की प्रेम कहानी दोहा -चौपाई लिखी थी पञ्च पञ्च चौपाइयों पे दोहा या सरोठा है | यह श्रृंगार रस की दृष्टि से ही लिखी जान पड़ती है|अध्यात्मिक दृष्टि से नहीं इसमें जो कुछ रुचिरता है वह कहानी की है | वस्तु वर्णन, भावः व्यंजन आदि की नहीं| कहानी की प्राकृत या अपभ्रंश से चली आती हुई कहानी है | कवि ने रचना काल का उल्लेख इस प्रकार किया है -

दिल्लीपति अकबर सुरताना| सप्तदिप में जाकी आना||

धरमराज सब देश चलवा | हिन्दू-तुरुक पंथ सब लावा ||

. महाराज टोडरमल- ये कुछ दिन शेरशाह के यहाँ ऊँचे पद पर थे, पीछे अकबर के समय में भूमिकर विभाग के मंत्री हुए | इनका जन्म संवत १५५० में और मृत्यु संवत १६४६ में हुई | ये कुछ दिन तक बंगाल के सूबेदार भी थे | ये जाति के खत्री थे इन्होने शाही दफ्तरों में हिंदी के स्थान पर फारसी का प्रचार किया जिससे हिन्दुओं का झुकाव फारसी की शिक्षा की ओर हुआ | ये प्रायः निति -सम्बन्धी पद्य कहते थे |

. महाराज बीरबल- इनकी जन्मभूमि कुछ लोग नारनौल बतलाते है और इनका नाम महेश दास | प्रयाग के किले के भीतर जो अशोक स्तम्भ है उसपर यह खुदा है- "संवत १६३२ शके १४९३ मार्ग बदी ५, सोमवार गंगादास सूत महाराज बीरबल श्री तीरथराज प्रयाग की यात्रा सुफल लिखित |"

. गंग - ये अकबर के दरबारी कवि थे और रहीम खानखाना इन्हें बहुत मानते थे | इनके जन्म काल थे कुल आदि का ठीक वृत्त ज्ञात नहीं कुछ लोग इन्हें ब्रह्मण कहते है , पर अधिकतर ये ब्रह्मभट ही प्रसिद्ध है | ऐसा कहा जाता है की किसी नवाब या रजा की आज्ञा से ये हाथी से चिरवा डाले गए थे उसी समय मरने से पहले उन्होंने ये दोहा कहा था -

कबहुँ न भडुआ रन चढे , कबहुँ न बाजी बम्ब |

सकल सभाही प्रनाम करि, विदा हॉट कवि गंग ||

१०. जमाल - ये भारतीय काव्य परम्परा से पूर्ण परिचित कोई सहृदय मुस्लमान कवि थे जिनका रचना काल १६२७ अनुमान किया गया है | इनकी निति और श्रृंगार के दोहे राजपूताने की ओर बहुत जनप्रिय है| भावो की व्यंजन बहुत ही मार्मिक पर सीधे-सधे ढंग पर की गई है | इनका कियो ग्रन्थ तो नहीं मिलता ,पर कुछ सग्रहित दोहे मिलते है | सहृदयता के अतिरिक्त इनमे शब्द क्रीडा की निपुणता भी थी, इससे इन्होने कुछ पहेलियाँ ही अपने दोहों में रही है-

पूनम चाँद ,कुसुम्भ रंग, नदी तीर द्रुम डाल|

रेत भीत, भुस लिपणो , ऐ थिर नहीं जमाल ||

११.केशवदास - ये सनाढ्य ब्रह्मण कृष्णदत्त के पौत्र और कशी नाथ के पुत्र थे |इनका जन्म १६१२ में और मृत्यु १६७४ के आस पास हुई | ओरछा नरेश महाराज के भाई इन्द्रजीत सिंह की शभा में ये रहते थे जहां इनका बहुत मान था | इनके घराने में बराबर संस्कृत के अच्छे पंडित होते आये थे | इनके बड़े भाई बलभद्र मिस्र भाषा के अच्छे कवि थे | इस प्रकार की परिस्थिति में रह कर ये अपने समय के प्रधान साहित्य शास्त्र कवि मने गए |यह स्वाभाविक भी था, क्योंकि हिंदी काव्य रचना प्रचुर मात्र में हो चुकी थी| केशव दास जी संस्कृत के पंडित थे अतः शास्त्रीय पद्धति से साहित्य चर्चा का प्रचार भाषा में पूर्ण रूप से करे की इच्छा इनके लिए स्वभाविक थी|

केशव दास के पहले संवत १५९८ में कृपाराम थोडा रस निरूपण कर चुके थे | इसी समय में चरखारी के मोहन लाल मिस्र ने 'श्रृंगार वृत्त ' नामक ग्रन्थ श्रृंगार सम्बंधित लिखा |नरहरी कवि के साथ अकबरी दरबार में जाने वाले कर्नेस कवि ने ' कर्णाभरण' ' श्रुतिभूषण' और 'भूपभूषण' नामक तीन ग्रन्थ अलंकार सम्बन्धी लिखे थे | ये काव्य में अलंकार के स्थान प्रधान समझने वाले चमत्कार वादी कवि थे जैसा की इन्होने स्वयं कहा है-

जदपि सुजाति सुलच्छनी , सुबरन सरस सुवृत |

भूषण बिनु न वीराजई, कविता बनिता मित्त||

अलंकारों के लक्षण इन्होने डंडी के ' काव्यादर्श ' से था बहुत- सी बाते अमर रचित काव्य 'कल्प्लातावृति ' और केशव मिस्र कृत 'अलंकार शेखर ' से ली है | पर केशव के ५० या ६० वर्ष पीछे हिंदी में लक्षण ग्रंथों की जो परम्परा चली वह केसव के मार्ग पर नहीं चली | काव्य के स्वरूप के सम्बन्ध में तो वह रस की प्र्ध्नता मानाने वाले काव्य प्रकाश और साहित्य दर्पण के पक्ष पर ही और अलंकारों के निरूपण में उसने अधिकतर चंद्रालोक और कुवाल्यानंद का अनुशरण किया है |

ग्रंथों में केशव का अपना विवेचन कही नहीं दिखाई पड़ता है | साडी सामग्री कई संस्कृत ग्रंथों से ली हुई मिलती है उपमा के जो २२ भेद केशव ने रखे है उनमे से १५ को ज्यों का त्यों डंडी के है,५ केवल नाम भर बदल दिए गए है | शेष रहे दो भेद - संकिर्नोपमा वीपरितोप्मा | इसमें विपरितोप्मा को उपमा कहना ही व्यर्थ है| इसी प्रकार 'आक्षेप 'के जो ९ भेद केशव ने रखे है उनमे ४ तो जयो के त्यों डंडी के है |पांचवा मनाक्षेप डंडी का मुछारक्षेप ही है |केसव के रचे ७ ग्रन्थ मिलते है- कविप्रिया ,रसिकप्रिया, रामचंद्रिका, विर्सिंघदेवरचित, विज्ञानगीता, रतनबावनी और जहाँगीर जसचंद्रिका |

१२.होलराय- ये ब्रह्म भट्ट अकबर के समय में हरिवंश राय के आश्रित थे और कभी-कभी शाही दरबार में भी जाया करते थे | इन्होने अकबर से कुछ ज़मीन पाई थी जिसमे होलपुर गाँव बसाया था | कहते है की गोस्वामी तुलसीदास जी ने इन्हें अपना लोटा दिया था जिसपर उन्होंने कहा था-

लोटा तुलसीदास को लाख टक्का मोल |

गोस्वामी जी ने चाट उत्तर दिया

मोल-टोल कुछ है नहीं ,लेहु राय कवि होल ||

१३,. रहीम(अब्दुर्रहिम खानखाना)- ये अकबर बादशाह के अभिभावक प्रसिद्ध मुग़ल सरदार बैरम खान खानखाना के पुत्र थे| इनका जन्म संवत १६१० में हुआ | ये संस्कृत, अरबी और फारसी के पूर्ण विद्वान् और हिंदी काव्य के पूर्ण मर्मग्य कवि थे| ये दानी और परोपकारी ऐसे थे की अपने समय के कर्ण मने जाते थे ;ये जहाँगीर के समय तक वर्तमान रहे | लडाई में धोखा देने के अपराध में एक बार जहाँगीर के समय इनकी सारी जागीर जब्त हो गई और कैद कर लिए गए | कैद से छूटने पर इन्ह=की आर्थिक अवस्था कुछ दिनों तक बहुत हिन् रही| अपनी अवस्था के अनुभव की व्यंजन इन्होने इस दोहे में की है-

तब ही लों जोबो भलो देबो होय न धीम|

जग में रहिबो कुंचित गति उचित न होए रहीम || सम्पति के समय में जो लोग सदा घेरे रहते है विपत के आने पर उनमे अधिकांश किनारा खीचते है , इस बात का द्योतक ये दोहा है-

ये रहीम दर-दर फिरें , मांगी मधु करि खाहिं |

यारो यारी छाडीए, अब रहीम वे नहीं ||

गोस्वामी तुलसीदास से भी इनका बड़ा स्नेह था | ऐसी जनश्रुति है की एक बार एक ब्रह्मण अपनी कन्या के विवाह के लिए धन न होने से घबराया हुआ गोस्वामी जी के पास आया | गोस्वामी जी ने उसे रहीम के पास भेजा और दोहे की ये पंक्ति लिख कर दे दी-

"सुरतिय नरतिय नागतिय यह चाहत सब कोय |"

१४. कदीर-कदीर बख्श पिहानी - जिला हरदोई के रहने वाले और सैय्यद इब्राहीम के शिष्य थे | इनका जन्म संवत १६३५ मन जाता है | अतः इनका कविता काल संख्या १६६० के आस पास समझा जा सकता है | इनकी कोई पुस्तक तो नहीं मिलती पर फुटकल कवित पाए जाते है|

१५. मुबारक - सैय्यद मुबारक अली बिलग्रामी का जन्म संवत १६४० में हुआ था , अतः इनका कविता काल संवत १६७० के पीछे मानना चहिये | ये संस्कृत , फारसी और अरबी के अच्छे पंडित और हिंदी के सहृदय कवि थे |इनका प्राप्त ग्रन्थ ' अलकशतक' और 'तिलकशतक' उन्ही के अर्न्तगत है| इन दोहो के अतिरिक्त इनके बहुत से कवित सवैये ग्रंथो में पाए जाते है|

१६. बनारसीदास- ये जौनपुर के रहने वाले एक जैन जोहरी थे जो अमेर में भी रहा करते थे | इनके पिता का नाम खडक सेन था | ये संवत १६४३ में उत्पन्न हुए थे | इन्होने संवत १६९८ तक अपना जीवन वृत्त आर्ध्क्थानक नामक ग्रन्थ में दिया है | पुराने हिंदी साहित्य में यही एक आत्मचरित मिलता है, इससे इनका महत्व अधिक है इस ग्रन्थ से पता चलता है की युवा अवस्था में इनका आचरण अच्छा न था और इन्हें कुष्ट रोग हो गया था |

बनारसी विलास ( फुटकल कवितों का संग्रह ) , नाटक समय सार ,नाम माला (कोष ) , आर्ध्क्थानक,बनारसी पद्दति मोक्षपदी, ध्रुव वंदना , कल्याण मंदिर भाषा , मार्गन विद्या, वेद निर्णय पंचाशिका |

१७. सेनापति- ये अनूप शहर के रहने वाले कान्य कुब्ज ब्रह्मण थे |इनके पिता का नाम गंगाधर,पितामह का परशुराम और गुरु का नाम हीरामणि दीक्षित था | इनका जन्म काल संवत १६४६ के आस पास मन जाता है |ये बडे ही सुहृदय कवि थे | ऋतू वर्णन तो उनके जैसा और किसी श्रृंगार कवि ने नहीं किया है|

१८. पुहकर कवि- परताप पुर के रहने वाले थे पर पीछे गुजरात में सोमनाथ जी के पास भूमि गो में रहते थे | ये जाति के कायस्थ थे और जहाँगीर के समय में वर्तमान थे| कहते है की जहाँगीर ने किसी बात पर इन्हें आगरे में कैद कर लिया था | वहीँ कारगर में ही इन्होने 'रस्रातन ' नामक ग्रन्थ संवत १६७३ में लिखा जिनपर प्रसन्न होकर बादशाह ने इन्हें कारागार से मुक्त कर दिया | इस ग्रन्थ में राम्भ्वती और सुर सेन की प्रेम कथा कई छंदों में ,जिनमे मुख्य दोहा और चौपाई है , प्रबंध काव्य की साहित्यिक पद्दति पर लिखी गई| इस कवि के ग्रन्थ नहीं मिलते है | पर प्राप्त ग्रन्थ को देखने से ये एक अच्छे कवि जान पड़ते है |

१९.सुन्दर- ये ग्वालियर के ब्रह्मण थे और शाहजहाँ के दरबार में कविता सुनाया करते थे | इन्हें बादशाह ने पहले कवि राय की और फिर महाकवि राय की पदवी दी थी| इन्होने संवत १६८८ ममे 'सुन्दर श्रृंगार ' नामक नायिका का भेद का एक ग्रन्थ लिखा | कवि ने रचा की तिथि इस प्रकार दी है-

संवत सोरह सै बरस , बीते अठत्तर सीती|

कातिक सुदी सतमी गुरों,रचे ग्रन्थ करि प्रीति||

२०. लालचंद या लक्षोदय- ये मवाद के महाराणा जगतसिंह (संवत १६६५-१७०९) की माता जाम्बवंती जी के प्रधान श्रावक हंशराज के भाई डुंगरसी के पुत्र थे | इन्होने संवत १७०० में ' पदिमनी चरित्र' नामक एक प्रबंध काव्य की रचना की जिसमे राजा रत्नसेन और पद्मिनी की कथा का राजस्थानी मिली भाषा में वर्णन है


सूफी रचनाओं के अतिरिक्त भक्तिकाल के अन्य आख्यांकव्य

आश्रयदाता राजाओ के चरितकाव्य था ऐतिहासिक या पौराणिक आख्यान काव्य लिखने की जैसी परंपरा हिन्दुओं में बहुत प्राचीन काल से चली आती थी वैसी पद्य बद्ध कल्पित कहानियां लिखने की नहीं थी | कही कही तो केवल कुछ नाम ही ऐतिहासिक या पौराणिक रहते थे , वृत्त सारा कल्पित रहता था जैसे इश्वरदास कृत 'सत्यवतिकथा' |

आत्म कथा का विकास भी नहीं पाया जाता | केवल जैन कवि बनारसी दास का " अर्धकथानक मिलता है |

नीचे मुख्य आख्यान काव्यों का उल्लेख किया जाता है-

ऐतिहासिक-पौराणिक कल्पित आत्मकथा

१. रामचरितमानस (तुलसी) १. ढोल मरू रा दुहा (प्राचीन ) १. अर्धकथानक (बनारसीदास )

२.हरिचरित (लालच दास) २. लक्ष्मण सेन पद्मावती कथा

(दामोकवि)

३. रुक्मिनिमंगल (नरहरी) ३.सत्यवती कथा (ईश्वरदास )

४. रुक्मानिमंगल (नंददास) ४. माधवानल कामकंदला (आलम )

५. सुदामाचरित (नारोताम्दास) ५. रसरतन (पुहकर कवि )

*******************************************

No comments:

Post a Comment